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जेल के 127 साल पुराने प्रिजंस एक्ट में संशोधन, बंदियों पर मिला मोबाइल तो होगी यह कार्रवाई

आगरा

जेलों में रहने के बाद भी मोबाइल की मदद से बाहर गिरोह चलाने वाले बंदियों पर शिकंजा अब और सख्त होगा। जेलों में रहकर बाहरी दुनिया से संपर्क साधने वाले अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार ने 127 साल पुराने प्रिजंस एक्ट की दो धाराओं में संशोधन किया है। जिसके बाद जेलों में मोबाइल व इंटरनेट से संबंधित अन्य डिवाइस बंदियों के पास मिलने पर उन्हें पांच साल तक की सजा होगी। इसके साथ ही 50 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया जाएगा। प्रभारी डीआइजी कारागार मंडल आगरा ने जेल अधीक्षकों को इसे लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जेल परिसर के अंदर व बाहर इस जानकारी को चस्पा कराने की कहा है।जिससे कि बंदी व उनके मुलाकाती इसके बारे में जान सकें। वह ऐसी कोई गतिविधि न करें, जिससे उन्हें सजा और जुर्माना दोनों भुगतना पड़े।

प्रिजंस एक्ट 1894 का है। उस समय मोबाइल या इंटरनेट जैसी कोई सुविधा नहीं थी। जिसके चलते जेलों में बंदियों से माेबाइल या इंटरनेट डिवाइस मिलने पर उनके खिलाफ सजा का प्रावधान नहीं था।राज्य सरकार ने इस वर्ष प्रिजंस एक्ट 1894 की धारा 42 व 43 में संशोधन करते हुए अब बंदियों के लिए सजा का प्रावधान किया है।

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जिससे जेलों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके मोबाइल या इंटरनेट डिवाइस का प्रयोग करने वाले बंदियों पर प्रभावी कार्रवाई की जा सकेगी। उनके पास मोबाइल या किसी भी प्रकार की इंटरनेट डिवाइस जिससे वह बाहरी दुनिया से संपर्क कर सकते हैं। बरामद होने पर बंदियों को तीन से पांच साल की सजा होगी। इसके साथ ही उन पर 50 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया जाएगा।

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बाहरी दुनिया से संपर्क करने वाली इन डिवाइस पर है प्रतिबंध

सिम, मोबाइल, वाई-फाई, ब्लूटूथ, निकट क्षेत्र संचार (एनएफसी), टैबलेट, वैयक्तिक कंप्यूटर, कंप्यूटर, लैपटाप, पामटाप, इंटरनेट, जनरल पैकेट रेडियो सर्विस, ईमेल, शार्ट मैसेज सर्विसेज (एसएमएस), मल्टीमीडिया मैसेज सर्विस (एमएमएस) या अन्य डिवाइस जिन्हें बाहरी दुनिया से संपर्क करने या किसी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

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