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‘Myths and Facts’- वैक्सीनेशन पॉलिसी पर हमलों के बीच नीति आयोग ने जारी किया लंबा बयान, यहां डिटेल में पढ़ें

नई दिल्ली: अपनी कोविड वैक्सीनेशन पॉलिसी को लेकर लगातार हमले झेल रही मोदी सरकार अपना बचाव कर रही है. गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी की ओर से एक ब्रीफिंग करके विपक्ष पर हमला किया गया था. वहीं, आज दिन में नीति आयोग ने वैक्सीनेशन प्रक्रिया पर ‘Myths and Facts on India’s Vaccination Process’ शीर्षक से एक डॉक्यूमेंट रिलीज किया है. इसमें आयोग की ओर से 7 बिंदुओं में वैक्सीन को लेकर उठाए जा रहे सवालों और आरोपों का जवाब दिया गया है. नीति आयोग ने कहा है कि वैक्सीनेशन को लेकर ‘तोड़े-मोड़े बयान, आधे सच और सफेद झूठों ने इस संकट के मैनेजमेंट को लेकर कई झूठ पैदा हो गए हैं.’ इसमें ‘राजनीति कर रहे कुछ नेताओं’ पर भी हमला किया गया है.

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इस डॉक्यूमेंट में आयोग उन आरोपों का जवाब दिया है कि सरकार ने वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी पूरी तरह राज्यों पर छोड़ दी है, या फिर वैक्सीन का प्रोडक्शन नहीं बढ़ा रही है, या फिर दूसरी वैक्सीन्स को मंजूरी नहीं दे रही, या फिर बच्चों के वैक्सीनेशन की चिंता नहीं कर रही है.

मिथ 1- केंद्र विदेशों से पर्याप्त वैक्सीन नहीं खरीद रहा. 

इसके जवाब में आयोग ने कहा है कि सरकार 2020 के मध्य से ही वैक्सीन इंपोर्ट करने की कोशिशों में लगी हुई है. फाइज़र, मॉडर्ना और J&J से कई राउंड की बातचीत हुई है. सप्लाई के लिए सहयोग देने की बात कही गई है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन खरीदने में फर्क है. वैक्सीन लिमिटेड है. कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं हैं. वो अपने देशों को भी प्राथमिकता देती हैं, जैसा कि हमारे यहां हुआ था. फाइज़र की उपलब्धता की बात पता चलते ही हमने इंपोर्ट के लिए कोशिशें तेज कर दी हैं. कोशिशों से ही स्पुतनिक वैक्सीन को मंजूरी मिली है.

मिथ 2- सरकार विदेशों में उपलब्ध वैक्सीन्स को मंजूरी नहीं दे रही.

आयोग का कहना है कि केंद्र सरकार ने अप्रैल से भारत में ऐसी वैक्सीन्स की एंट्री आसान कर दी है जिन्हें यूएस के एफडीए, ईएमए, यूके के एमएचआरए और जापान के पीएमडीए और डब्ल्यूएचओ की इमरजेंसी यूज लिस्टिंग की मंजूरी मिली हो. इन टीकों को पूर्व ब्रिजिंग परीक्षणों से गुजरने की जरूरत नहीं होगी. अन्य देशों में निर्मित जाने-माने टीकों के लिए ट्रायल को पूरी तरह से खत्म करने प्रावधान में और संशोधन किया गया है. ड्रग कंट्रोलर संस्था के पास अप्रूवल के लिए किसी विदेशी वैक्सीन-निर्माता कंपनी का कोई एप्लीकेशन पेंडिंग नहीं है.

मिथ 3- केंद्र घरेलू स्तर पर टीकों का उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं कर रहा

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नीति आयोग ने इस आरोप के जवाब में कहा है कि केंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से टीका उत्पादन को लिए अधिक से अधिक कंपनियों को सक्षम बनाने पर काम कर रहा है. फिलहाल केवल 1 भारतीय कंपनी (भारत बायोटेक) है जिसके पास आईपी है. भारत सरकार ने सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक के प्लांट को बढ़ाने के साथ-साथ 3 अन्य कंपनियां/संयंत्र भी कोवैक्सिन का उत्पादन शुरू करेंगे. कोवैक्सिन का उत्पादन अक्टूबर तक 1 करोड़ प्रति माह से बढ़ाकर 10 करोड़ माह किया जा रहा है. इसके अलावा तीन सरकारी कंपनियां साथ में मिलकर दिसंबर तक 4.0 करोड़ खुराक तक उत्पादन करेंगी, ये लक्ष्य होगा. सीरम इंस्टीट्यूट प्रति माह 6.5 करोड़ खुराक के कोविशील्ड उत्पादन को बढ़ाकर 11.0 करोड़ खुराक प्रति माह कर रहा है. स्पुतनिक का निर्माण डॉ रेड्डीज के अंडर में 6 कंपनियां करेंगी.  द्वारा किया जाएगा. केंद्र सरकार कोविड सुरक्षा स्कीम के तहत फंडिंग से जायडस कैडिला, बायोई के साथ-साथ जेनोवा के अपने-अपने स्वदेशी टीकों के लिए बढ़ावा दे रही है.

मिथ 4- केंद्र को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करना चाहिए.

आयोग का कहना है कि वक्त अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ गया और एक्टिव पार्टनरशिप, स्रोत, संसाधन और मैनपावर अहम हैं. इसने बताया कि  कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और 3 अन्य संस्थाओं के बीच सक्रिय भागीदारी बनाई जा रही है और स्पुतनिक के लिए भी ऐसा किया जा रहा है. आयोग ने उदाहरण देते हुए बताया कि लाइसेंसिंग इसलिए जरूरी नहीं है कि मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी, लेकिन फिर भी एक कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे कम समस्या है. अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित दुनिया में भी वैक्सीन की खुराक की इतनी कमी क्यों होती?

मिथ 5- केंद्र ने अपना जिम्मा राज्यों पर छोड़ दिया है.

आयोग ने बचाव में कहा है कि सरकार वैक्सीन की मंजूरी, उत्पादन, सप्लाई, आयात जैसे सारे काम तेजी से कर रही है. केंद्र जो वैक्सीन खरीद रही है, वो पूरी तरह राज्यों को सप्लाई की जा रही है. सबकुछ राज्यों को पता है. राज्यों के अनुरोध पर उन्हें खुद टीकों की खरीद का प्रयास करने में सक्षम बनाया गया है. राज्यों को देश की उत्पादन क्षमता और विदेशों से सीधे टीके प्राप्त करने में क्या मुश्किलें हैं, यह सबकुछ अच्छी तरह से पता था. सरकार ने जनवरी से मई तक सफलतापूर्वक ड्राइव चलाया, लेकिन जिन राज्यों ने 3 महीने में स्वास्थ्य कर्मियों और वर्कर्स का वैक्सीनेशन कवर भी नहीं किया था. वे  भी टीकाकरण की प्रक्रिया और बढ़ाना चाहते थे और अधिक विकेंद्रीकरण चाहते थे. स्वास्थ्य राज्य का विषय है और सरकार ने राज्यों के अनुरोध पर अपनी वैक्सीन पॉलिसी को और उदार किया था. राज्यों को ग्लोबल टेंडरों से सफलता नहीं मिली है, यह इसी बात को कन्फर्म करता है जो हम पहले दिन से कह रहे हैं- दुनिया में वैक्सीन कम है और उन्हें कम समय में खरीदना आसान नहीं है.

मिथ 6- केंद्र राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा है.

आयोग का कहना है कि सरकार सबकी सहमति से बने दिशा-निर्देशों के अनुसार पारदर्शी तरीके से पर्याप्त टीके दे रही है. निकट भविष्य में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है और बहुत अधिक आपूर्ति संभव होगी. गैर-भारत सरकार चैनल में राज्यों को 25% खुराक मिल रही है और निजी अस्पतालों को 25% खुराक मिल रही है. हालांकि, राज्यों के 25% खुराकों के टीकाकरण में जो दिक्कतें आ रही हैं, वो असंतोषजनक है. ऊपर से कुछ नेता, जिन्हें यह सबकुछ अच्छे से पता है लेकिन वो टीवी पर बैठकर लोगों में डर फैलाते हैं और यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है.

मिथ 7- सरकार बच्चों के वैक्सीनेशन के लिए कदम नहीं उठा रही.

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आखिर में आयोग ने इसपर तर्क दिया है कि दुनिया का कोई देश अभी बच्चों को वैक्सीन नहीं दे रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी इसपर कोई सुझाव नहीं है. कुछ स्टडीज़ हुई हैं, जिनके नतीजे उम्मीद देते हैं. भारत में भी जल्द ही बच्चों पर ट्रायल शुरू होने जा रहा है. हालांकि, इसपर बस इसलिए फैसला नहीं ले लेना चाहिए क्योंकि व्हाट्सऐप ग्रुप्स में डर फैलाया जा रहा है या फिर क्योंकि हमारे कुछ नेता राजनीति करना चाहते हैं. फैसला हमारे वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध होने के बाद लेंगे.

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