HomeUttar PradeshAgraउत्तराखंड की विरासत और इसका पावन भूमि

उत्तराखंड की विरासत और इसका पावन भूमि

देश में पूर्ण राज्य के रूप में उत्तराखंड की स्थापना के दो दशक बीत जाने के बाद भी इस राज्य में विकास की रफ्तार अभी भी धीमी है और यह राज्य आर्थिक स्तर पर पिछड़ेपन से चतुर्दिक घिरा है . बेरोजगारी के साथ पलायन यहाँ के जनजीवन की प्रमुख समस्या है और दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में जनजीवन विकास की बाट जोहता दिखायी देता है .

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उत्तराखंड में कभी सघन वनों से परिपूर्ण राज्य था और यहाँ देवदार के जंगलों के अलावा अन्य बेशकीमती वृक्ष प्रचुर परिमाण में विस्तीर्ण थे . ब्रिटिश काल में यहाँ जंगलों की खूब कटाई हुई और इससे यहाँ के प्राकृतिक परिवेश को काफी हानि हुई . जंगलों के विनाश से वन्य जीव जंतु भी यहाँ विलुप्त होते गये . उत्तराखंड के जंगलों में असंख्य प्रकार की जड़ी बूटियाँ पायी जाती हैं और इनसे आयुर्वेदिक औषधियाँ बनती हैं . जिम कार्बेट पार्क आज भी यहाँ की वन्य संपदा की समृद्ध विरासत की याद दिलाता है .

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यहाँअल्मोड़ा , नैनीताल , मसूरी और पिथौरागढ़ प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हैं और यमुनोत्री , गंगोत्री को भी हिंदू तीर्थस्थल माना जाता है .शीत ऋतु में इस राज्य के कुछ हिस्सों में कड़ाके की ठंड पड़ती है . इस दौरान केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर के कपाट ग्रीष्मकाल तक के लिए बंद कर दिए जाते हैं .

गढ़वाल और कुमायूँ ये उत्तराखंड के दो प्रमुख अंचल हैं और इन दोनों ही अँचलों की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है . उत्तराखंड साहित्य कला संस्कृति से समृद्ध राज्य है और सालों भर यहाँ सुंदर पर्व त्योहार उत्सव मनाए जाते हैं . यहाँ की महिलाएँ पारंपरिक और संस्कारसंपन्न हैं .

उत्तराखंड में गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री को पावन कहा गया है . यहाँ से गंगा नि : सृत होकर हरिद्वार में पहाड़ से नीचे उतरती है और देश के एक बड़े भूभाग की जीवनरेखा बन जाती है .

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आजादी के बाद देश में देवभूमि कहा जाने वाला यह राज्य पिछड़ेपन और विकास की दिशा में उपेक्षित रहा . इसलिए यहाँ अलग राज्य की माँग जोर पकड़ने लगी और 9 नवंबर 2000 को यह पृथक् राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया और तब से यह राज्य प्रगति के पथ पर अग्रसर है .

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