एक आम लड़की वो कोई अदाकारा नहीं थी की साडी मीडिया उसको प्राथमिकता देती। वो तो दलित परिवार की एक 19 वर्ष की बिटिया थी। जिसे चार नर भक्षियों ने अपनी हवस का शिकार बना लिया था। और इस बिटिया का कसूर क्या था ? सिर्फ यही की वह अपने जीवन को जीना चाहती थी इससे अधिक कुछ इच्छा भी तो नहीं थी उसकी। लेकिन जिस्म की भूख रखने वाले जंगली भेड़ियों को उस बिटिया की इच्छा न गवार गुजरी और वहशीपन की हद पर करते हुए बलात्कार के बाद हाथरस की इस बची की जीभ काट दी, रीड की हड्डी तोड़ दी और जानवरों की तरह मारा पीटा। ये घटना 14 सितम्बर 2020 को हाथरस में घटित हुई। घटना के 9 दिन बाद बिटिया ने होश में आते ही बिटिया ने आप बीती अपने परिवार जनों को सुनाई। उसके साथ 4 दरिंदों ने किस प्रकार उसके जीवन को अपनी भूख मिटाने के लिए बर्बाद कर दिया। लेकिन बड़े शर्म की बात है इतनी कुछ जानकारी होने के बाद भी पुलिस ने बलात्कार का मुकदमा दर्ज न करके सिर्फ मामूली छेड़छाड़ और हत्या के प्रयास का मुकदमा एक व्यक्ति के कर दर्ज किया गया। बाकि के 3 युवकों पर किसी प्रकार का कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया था। और जिस युवक पर मुकदमा दर्ज किया गया था उसे भी कुछ समय बाद छोड़ दिया गया।
इसका क्या अर्थ हो सकता है क्यों पुलिस ने सिर्फ एक युवक पर मुकदमा दर्ज किया बाकि 3 पर क्यों नहीं ?
क्या ये इसलिए था की बच्ची दलित समाज से थी और आरोपित सवर्ण समाज से हैं, यदि यही एक कारन है कार्यवाही न होने का तो बड़े शर्म की बात है। आजादी के 73 सालों बाद भी हमारे समाज में समानता नहीं आ पायी है और फिर इस देश SC/ST आयोग के होने का कोई फायदा नहीं।
या फिर दूसरा कारन ये भी हो सकता है की पुलिस ने आरोपित से बच्ची की आबरू का सौदा कर लिया हो। कारन कुछ भी हो लेकिन ये सच है की मनीषा के साथ घाटी घटना और जिंदगी की जंग हरने के बाद।
हम सभी पर सवाल छोड़ गयी है की क्या हमे भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए या फिर शर्मसार होना चाहिए की हम ऐसे देश में रहते हैं जहां नदियों की तो पूजा की जाती है और बिटियाओं को अपनी हवस मिटाने का एक सामान समझा जाता है। शर्मसार कर जाती हैं देश की ऐसी घृणित करतूते, जो देश अपनी बेटियों की रक्षा नहीं कर सकता वो क्या विश्व गुरु बनेगा ?
अब देखना ये होगा की हमारे देश की न्यापालिका एक और निर्भया जैसा इतिहास रचेगी या फिर हाथरस की मनीषा को न्याय मिल पायेगा और मिलता भी है तो कब तक?
एक और बड़ा सवाल हम सबके सामने की अगर मनीषा को न्याय मिल भी जाता है तो इस न्याय का मनीषा को क्या लाभ होगा ?
क्यों हमारे भारत देश में कड़ोर कानून का निर्माण नहीं किया जा सकता ? जब रिटायर होने वाले जज रातो-रात संसद में पहुँच सकते हैं, किसान बिल पास कराकर कानून बनाया जा सकता है, तो फिर क्यों एक कड़ोर महिला सुरक्षा कानून नहीं बनाया जा सकता ? आखिर क्यों ?
या फिर हम ये समझ लिया जाये की हम ऐसे देश में रह रहे हैं जहां पर राजनीती से बड़ा कुछ नहीं है, न किसी का जीवन, न ही किसी की आबरू और न किसी की मन मर्यादा। कम से कम एक आम आदमी की तो नहीं।
इतना सब होने के बाद भी हाथरस पुलिस ने मनीषा के परिवार के बिना इजाज़त उनके विरोध करने पर भी मनीषा के शव का रातो-रात अंतिम संस्कार खुद ही कर दिया और जब सफाई कर्मियों या नहीं वाल्मीकि समाज ने इसका विरोध प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उनपर लाठी चार्ज कर दिया जिसमे कई लोग चोटिल हो गए।