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संविधान भारत का

भारतीय संविधान के तहत देश के हर नागरिक को कुछ अधिकार प्रधान किये गए हैं जो उसे गौरव से जीवन यापन करने में मददगार हैं। आइये आपको बताते हैं उन अधिकारों के कुछ अंश।

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1 मौलिक अधिकार

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भारतीय संविधान के तृतीय भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों (fundamental rights) की विस्तृत व्याख्या की गयी है. यह अमेरिका के संविधान से ली गयी है. मौलिक अधिकार व्यक्ति के नैतिक, भौतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है. जिस प्रकार जीवन जीने के लिए जल आवश्यक है, उसी प्रकार व्यक्तित्व के विकास के लिए मौलिक अधिकार. मौलिक अधिकारों (fundamental rights) को 6 भागों में विभाजित किया गया है –

मौलिक अधिकार

प्रकार (TYPES OF FUNDAMENTAL RIGHTS)

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

5. संस्कृति और शिक्षा से सम्बद्ध अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

6. सांवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32-35)

मौलिक अधिकार के अंतर्गत यह बताया गया है कि वे सब कानून, जो संविधान के शुरू होने से ठीक पहले भारत में लागू थे,  उनके वे अंश लागू रह जायेंगे जो संविधान के अनुकूल हों अर्थात् उससे मेल खाते हों. यह भी कहा गया कि राज्य कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकता, जिससे मौलिक अधिकारों पर आघात होता है. “राज्य” शब्द से तात्पर्य है – – संघ सरकार, राज्य सरकार दोनों. अब हम ऊपर दिए गए 6 मौलिक अधिकारों (fundamental rights) का बारी-बारी से संक्षेप में वर्णन करेंगे।

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नोट: आज स्कूलों में बच्चों को संविधान के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं दी जाती इसलिए हम ये एक छोटी सी पहल कर रहे हैं। जिससे लोगों को उनके अधिकार और कर्तव्यों के बारे में जागरूक किया जा सके। आपसे अनुरोध है यदि आपके पास उचित जानकारी है तो हमारा सहयोग करें।

 

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