आगरा
आगरा की दो चीजें दुनियाभर में चर्चित हैं। पहला है ताजमहल और दूसरा आगरा का पेठा (Agra ka Petha) है। हालांकि, इन दिनों कोरोना वायरस (Coronavirus latest News India) का असर इन दोनों पर ही दिख रहा है। ताजमहल बंद होने की वजह से पर्यटकों का आना-जाना बंद है। वहीं, पेठे को खरीदने वाले भी अब नहीं मिल रहे हैं। इसकी वजह से पेठे के व्यापारियों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
नूरी दरवाजा व्यापार मंडल के अध्यक्ष नवीन गुप्ता कहते हैं, ‘अबतक व्यवसायियों को 200 से 300 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। मुगलों की रसोई में जरूरी व्यंजन पेठा होता था। आगरा में पेठा नूरी दरवाजा क्षेत्र में बनना शुरू हुआ था। जहांगीर की पत्नी नूरजहां को पेठा बहुत पसंद था। इसी वजह से उनके नाम पर इसका नाम नूरी दरवाजा पड़ा था। यहां पेठे की 100 से ज्यादा इकाइयां अभी भी चलती हैं। यहीं, शहीद भगत सिंह ने कुछ समय रहकर अंग्रेजों की असेंबली में फेंकने के लिए बम बनाया था। पेठा उद्योग से 5000 से अधिक लोग जुड़े हैं। आगरा के बाजारों में पेठे की नामी इकाइयां मुन्नालाल, गोपालदास और पंछी पेठा हैं। इसके अलावा यहां 1000 के करीब छोटी बड़ी इकाइयां संचालित हैं। इन इकाइयों में 500 से अधिक कारोबारी और 5000 से अधिक कारीगर हैं।’
पेठे की कितनी वैरायटी?
नवीन कहते हैं कि इस उद्योग का टर्नओवर लगभग 100 करोड़ का है। पहले नूरी दरवाजा ही मुख्य जगह थी लेकिन कोयले पर प्रतिबंध के चलते अधिकांश इकाइयां अब टेढ़ी बगिया पेठा मंडी में शिफ्ट हो गई हैं। यहां गैस पर ही पेठा तैयार होता है। 50 से अधिक तरह का पेठा बाजार में उपलब्ध है। वर्तमान में बाजार में चॉकलेट, पान, अंगूरी, सैंडविच, ड्राई पेठा, कंचा, लाल पेठा, गिलौरी जैसी वैरायटियां मौजूद हैं, जो आगरा के अलावा कहीं भी मिलना काफी मुश्किल है।
कम हो गई है पेठे की बिक्री
कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन में व्यासाय से जुड़े लोगों के गोदामों में रखा पेठा चूहे खा गए और काफी मात्रा में प्रवासियों को बांट दिया गया। इसके बाद अनलॉक में पर्यटन स्थल बंद होने के कारण बाहर से कोई खरीदने वाला ही आ नहीं रहा है और आम लोग भी संक्रमण के डर से पेठा खाने में कम रुचि दिखा रहे हैं। गर्मी के इस मौसम में पेठा बनने के बाद 24 घंटे से ज्यादा सही नहीं रह पाता और खटास आ जाती है। इस कारण बिक्री न होने पर लोग नया माल भी काफी कम मात्रा में बना रहे हैं।