डेयरी फार्म और गोशाला का संचालन अब आसान नहीं होगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उनके पर्यावरण प्रबंधन के लिए गाइडलाइन जारी की है। जिससे गाय और भैंस के मल-मूत्र से होने वाले वायु व जल प्रदूषण को रोका जा सके। वहीं, नई डेयरी और गोशाला खोलना उद्योगों के समान चुनौती भरा होने जा रहा है। यह शहर व गांव की सीमा के बाहर ही खुल सकेंगे और जल स्रोतों से उनकी दूरी के मानक तय कर दिए गए हैं।
डेयरी फार्म और गोशाला से पर्यावरण को सबसे बड़ी चुनाैती उनसे निकलने वाला गाय-भैंस का मल-मूत्र है। 400 किग्रा वजन की एक गाय या भैंस प्रतिदिन 15-20 किग्रा गोबर और 15-20 लिटर यूरिन करती है। इनका उचित निस्तारण नहीं किए जाने से दुर्गंध उत्पन्न होती है और नालियां अवरुद्ध होने पर मच्छरों के पनपने से रोग पनपते हैं। वहीं गोबर के फरमेंटेशन से हानिकारक गैसें कार्बन डाइ-ऑक्साइड, अमोनिया, हाइड्रोलन सल्फाइड, मीथेन आदि हवा में घुलकर उसे प्रदूषित करती हैं।
नई साइट के लिए सख्त नियम
सीपीसीबी ने नई साइट पर डेयरी और गोशाला बनाने के लिए सख्त नियम बनाए हैं। पूर्व से संचालित डेयरी व गोशाला को गाइडलाइन के अनुसार पर्यावरण सुधार संबंधित दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
यह हैं नई साइट के लिए नियम
– नई डेयरी और गोशाला शहर व गांव की सीमा से बाहर ही बनेंगे। आवासीय क्षेत्र से उनकी दूरी 200 मीटर और स्कूल व अस्पताल से 500 मीटर रखनी होगी।
डेयरी और गोशाला फ्लड प्रोन एरिया में नहीं बनेंगे, जिससे कि जल स्रोतों को दूषित होने से बचाया जा सके।
– राष्ट्रीय राजमार्ग से 200 मीटर दूर और राज्य मार्ग से 100 मीटर दूर ही डेयरी और गोशाला बन सकेंगी, जिससे उनकी दुर्गंध से लोग परेशान न हों और जानवरों की वजह से हादसे न हों।
– बड़े जलाशयों से डेयरी और गोशाला 500 मीटर की दूरी पर ही बन सकेंगे।
– पेयजल स्रोतों कुओं, स्टोरेज टैंक आदि से उनकी दूरी 100 मीटर रहेगी।
– नदी और झील से डेयरी व गोशाला की दूरी 500 मीटर रहेगी।
– नहरों से 200 मीटर दूरी पर डेयरी व गोशाला बनाई जा सकेगी।
वेस्ट मैनेजमेंट को यह करने होंगे इंतजाम
सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट
– डेयरी फार्म और गोशाला को शेड के फर्श से नियमित अंतराल पर गोबर उठाना होगा, जिससे कि फर्श साफ रहे। उसके आसपास के क्षेत्र को भी नियमित साफ करना होगा, जिससे कि दुर्गंध नहीं फैले।
डेयरी और उसके आसपास के क्षेत्र को उचित तरह से सेनेटाइज और डिसइंफेक्टेड करना होगा।
– सोलिड वेस्ट एकत्र कर उचित तरह से स्टोर करना होगा, जिससे कि उसे उपचारित किया जा सके।
– डेयरी और गोशाला गोबर को नाली में नहीं बहा सकेंगे। स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जिम्मेदारी होगी कि वो इसकी मॉनीटरिंग करे।
– डेयरी और गोशाला को सोलिड वेस्ट और वेस्ट वाटर के उचित निस्तारण व ट्रीटमेंट की व्यवस्था करनी होगी।
– गोबर के निस्तारण को कंपोस्टिंग, बायोगैस और लकड़ी बनाने की विधि अमल में लानी होगी।
वेस्ट वाटर मैनेजमेंट
– डेयरी और गोशाला को यह सुनिश्चित करना होगा कि वाे पानी की बर्बादी नहीं करेंगे। प्रत्येक गाय या भैंस पर वो 150 लिटर प्रतिदिन से अधिक पानी इस्तेमाल में नहीं लाएंगे।
– यह सुनिश्चित करना होगा कि डेयरी और गोशाला से निकलने वाला वेस्ट वाटर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय किए गए मानकों के अनुरूप हो।
गोशाला व डेयरी का फर्श पक्का होना चाहिए, जिससे कि वेस्ट वाटर भूगर्भ में जाकर भूगर्भ जल को प्रदूषित न करे।
एयर क्वालिटी मैनेजमेंट
– पशु रखने की जगह में वेंटीलेशन का उचित ध्यान रखना होगा, जिससे कि वहां स्वच्छ हवा आ-जा सके और नमी व गर्मी नहीं रहे। इससे वहां मीथेन, कार्बन डाइ-ऑक्साइड और अमोनिया आदि गैसों को बनने से रोका जा सकेगा।
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के मानक के अनुसार गाय व भैंसों के लिए डेयरी व गोशाला में जगह रखनी होगी।
– डेयरी फार्म और गोशाला को पौधारोपण कर ग्रीन बेल्ट विकसित करनी होगी, जिससे कि दुर्गंध नहीं फैले।