लॉकडाउन के दौरान सरकारी धान की कुटाई कर जिस चावल को 30 जून तक सरकारी गोदाम में जमा करवाना था, उसे कई राइस मिल संचालक बाजार में बेच गए। अब पीडीएस यानि राशन का सस्ता चावल खरीद कर उसे जमा करवाने की जुगत लगाई जा रही है। कुछ मिल संचालकों को अलग कर दिया जाए तो अन्य सरकारी चावल को जमा करवाने की अंतिम तिथि को आगे बढ़वाने के अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। कोविड के नाम पर अंतिम तिथि को आगे बढ़ाकर 15 जुलाई तक कर दिया गया है। बावजूद इसके कई राइस मिल अभी तक उस स्थिति में नहीं है कि वह इस तिथि तक भी धान जमा करवा सकें।
करनाल जिले में 316 राइस मिल सरकारी धान की कुटाई का काम करती हैं। इन मिलों को सरकारी धान की कुटाई करके चावल 30 जून तक जमा करवाना था, लेकिन कोरोना के मद्देनजर उन्हें 15 दिन का अतिरिक्त समय दिया गया है। समय पर धान की कुटाई करके चावल जमा नहीं होने के पीछे सबसे बड़ा तर्क कोरोना का ही दिया जा रहा है। जबकि लॉकडाउन के दौरान कुछ दिन जरूर दिक्कत आई। इसके बाद प्रशासन की ओर से राइस मिल संचालकों व लेबर के पास जारी कर दिए थे। चावल उद्योग पर निगाह रखने वाले अधिवक्ता एडवोकेट सुरजीत मंढाण ने कहा कि लॉकडाउन बहाने के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। हकीकत यह है कि लॉकडाउन के दौरान सरकारी चावल को बाजार में कई राइस मिल संचालकों ने बेच दिया। प्रशासन अभी सरकारी चावल या धान की मौजूदगी को लेकर राइस मिल में फिजिकल वेरीफिकेशन करवाता है तो सच्चाई सामने आ जाएगी। क्योंकि कुछ राइस मिल ही ऐसे हैं, जो सरकारी चावल जमा करवा चुके हैं।