ये आगरा नगर है जनाब, यहां मोहब्बत की मीनार ताज महल है तो एक शहंशाह के वैभव को बयान करता आगरा किला और फतेहपुर सीकरी भी है। विश्व धरोहरों की फेहरिस्त में ताज का ये शहर यूं ही अपने नाम ताज नहीं करता। यहां एतिहासिक इमारतों के अलावा प्रकृति की जीवंत मिसालें भी बसती हैं। जी हां, बेशकीमती पत्थरों से बने स्मारकों के अलावा यहां मुस्कुराती प्रकृति में दुनियाभर के पक्षी कलरव भी करते हैं। विदेशी पक्षियों के चिर परिचित ठिकाने कीठम झील के साथ एक और ठीकाना भी अब बन गया है। जी हां, आप सही समझे, जोधपुर झाल इन दिनों रंग बिरंगे पक्षियों की पसंद बनी हुई है।
आगरा व मथुरा जिले की सीमा पर स्थित मथुरा जिले के फरह ब्लाक की ग्राम पंचायत कौह के मौजा जोधपुर गांंव के पास स्थित 125 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला है जोधपुर झाल। कीठम सूर सरोवर के पास स्थित इस झाल में रंग बिरंगे पक्षीयों व तितलियों ने लोगों को आकर्षित करना शुरू कर दिया है। वर्तमान में कई पक्षियों की प्रजातियों द्वारा प्रजनन किया जा रहा है।
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह के अनुसार झाल और आस पास की जगह को बहुत बड़े पक्षी विहार के रूप में विकसित किया जा सकता है। जोधपुर झाल मे विभिन्न हेवीटाट के अनुसार पौधों का रोपण किये जाने की बहुत आवश्यकता है। इस पूरे क्षेत्र के अलग अलग हेवीटाट को संरक्षित करना होगा जिससे सभी प्रजातियों के पक्षियों का संरक्षण हो सके। ये झाल आस पास के गांंवों के लिए रोजगार का साधन बन सकता है। इसका सौंदर्य कीठम झील और भरतपुर के केवलादेव पार्क से कम नहीं है।
गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है झाल
जोधपुर झाल भारत के प्राचीन और समृद्ध इतिहास का गवाह है। जोधपुर झाल का निर्माण 1875 में अंग्रेजी हुकूमत के समय हुआ था। उस समय इस जलमार्ग में बडी नावों के आवागमन की बात भी सामने आई है। ओखला बैराज का पानी आगरा नहर में जोधपुर झाल तक आता है। यहांं से वह सिकन्दरा व टर्मिनल रजवाह मेंं बंंट जाता है। इनमें से लिंक नहरों के माध्यम से बहुत बड़े भू भाग में सिंचाई की व्यवस्था बर्ष 1902 से की जा रही है ।जलाधिकार फाउंडेशन के डा अनुराग शर्मा, नितिन अग्रवाल ने बताया कि संस्था के प्रयासों के परिणाम स्वरूप 55 हेक्टेयर जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराकर इसे नहर विभाग की मदद से प्राकृतिक झील बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।