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पैरों में छाले, भोजन के भी लाले लेकिन उम्‍मीदें हैं जवां, पढ़ें दावों की पोल खोलती खबर

था तुझे गुरूर खुद के लंबे होने का ऐ सड़क, गरीबों के हौसलों ने तुझे पैदल ही नाप दिया। ये जिंदगी की बेचारगी है, लेकिन उस पर प्रवासी मजदूरों का हौसला भारी। भरी दुपहरी जब 40 डिग्री तापमान पर सड़क तप रही थी, जब प्रवासी मजदूर जिंदगी की गाड़ी खींच रहे थे। नोएडा के धनकौर से 687 किमी पैदल सफर पर निकले, मजदूरों ने न पैरों के छाले देखे, न तपती धूप। आंखों में घर पहुंचने की उम्मीदें कैद हैं, तो कदम घर की राह की ओर बढ़े जा रहे हैं। सड़कों पर मजदूरों का काफिला अपने गांव-अपनी माटी पहुंचने की जिद्दोजेहद में है।यमुना एक्सप्रेस वे पर शुक्रवार दुपहरी जो दिखा, उसने प्रवासी मजदूरों के हौसले और बेचारगी दोनों बयां कर दीं। नोेएडा के धनकौर में मजदूरी करने वाले मध्य प्रदेश के दमोह के प्रेमलाल, पचइयां, राकेश, विनोद बाबू, संतोष और गौतम लाॅकडाउन में फंस गए। मजदूरी बंद हुई, तो खाने का संकट आ गया। जो पैसा बचा था, लाॅकडाउन में जैसे-तैसे काम चलाया। लेकिन अब जेब खाली हो गई। आंखों के सामने अंधेरा छाया और कोई रास्ता नहीं दिखा, तो गांव जाने की ठान ली। जेब में इतने पैसे भी नहीं कि वाहन कर सकें। एेसे में पैदल ही धनकौर से दमोह तक 687 किमी का सफर शुरू कर दिया। अब संकट सामान और कपड़े ले जाने की थी। एेसे में सबने मिलकर लकड़ी के पटरों को एक-दूसरे से जोड़ा और फिर उसमें बेयरिंग के पहिए लगा दिए। उस पर सारा सामान बोरियों में लादा और हाथ से खींचना शुरू कर दिया। आगे-आगे परिवार की महिलाएं और बच्चे चले, तो पीछे बारी-बारी से हाथ गाड़ी खींचते युवा। प्रेमलाल बताते हैं कि इसके अलावा कोई चारा नहीं था। घर में खेती नहीं है, लेकिन मकान का किराया तो नहीं देना पड़ेगा। कुछ न कुछ तो कर लेंगे। सुबह पांच बजे परिवार पैदल चले, तो दोपहर 1 बजे मथुरा के राया इंटरचेंज पर पहुंचा। दमोह कब पहुंचेंगे, विनोद बाबू ने जवाब दिया, एक हफ्ते में पहुंच जाएंगे। जहां तक शरीर साथ देगा चलेंगे और फिर वहीं सो जाएंगे। यमुना एक्सप्रेस व आगरा-दिल्ली हाईवे पर मजदूरोें का कारवां थम नहीं रहा। लाॅकडाउन में काम बंद हो गया, तो सबके हाथ खाली हो गए। छतरपुर के राजेश और उनके आधा दर्जन साथी पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों को लेकर दिल्ली से पैदल ही चल दिए। करीब 50 किमी तक एक वाहन पर बैठकर आ गए, लेकिन अब पैसे नहीं हैं। इसलिए पैदल ही जाएंगे। बच्चों के पैर जवाब दे गए। गुरुवार सुबह चले थे, तीन से चार दिन घर पहुंचने में लग जाएंगे। मानेसर से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और बिहार जाने के लिए एक सैकड़ा प्रवासी मजदूर पैदल ही चले। शरीर थक गया, मथुरा में एक ट्रक मिला, तो कुछ दूर ट्रक पर सफर की उम्मीद ने चेहरे पर चमक लगा दी। इलाहाबाद के राजेंद्र कहने लगे, जिंदगी में शायद ये संकट लिखा था, उसे भुगत रहा हूं। घर पहुंचने के बाद फिर कभी लौटकर नहीं देखूंगा।

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