प्राचीन भारत में गणेश प्रतिमाओं का मूर्ति और शिल्पकला में काफी अहम जगह रही है। समय के साथ कला शैलियों, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक प्रभावों के साथ-साथ भगवान गणेश की प्रतिमा के स्वरूप में काफी दिलचस्प बदलाव देखने को मिलते हैं। शुरुआती दौर में मिट्टी, पत्थर और लकड़ी जैसी साधारण चीजों से इन मूर्तियों को बनाया जाता था, जिनकी शैली काफी आसान थी।प्राचीन काल में, खासतौर से गुप्त काल (चौथी – छठवीं शताब्दी) में बनी गणेश प्रतिमाएं अपनी सौम्यता और आध्यात्मिक भव्यता के लिए जानी जाती थीं। ये प्रतिमाएं आमतौर पर छोटे आकार की होती थीं। इनमें गोलाकार शरीर, एक शांत और मीठी मुस्कान वाला चेहरा और काफी आभूषणों का चित्रण होता था।
इनकी मुद्राएं शांत और दैवीय कृपा का भाव प्रकट करती थीं। हाथों में अंकुश, पाश, मोदक और आशीर्वाद की मुद्रा दर्शाई जाती थी। ये प्रतिमाएं आमतौर पर उत्तर प्रदेश और मध्य भारत से हासिल हुई हैं।
मध्यकालीन परिवर्तन
मध्यकाल आते-आते गणेश प्रतिमाओं के स्वरूप में साफ बदलाव देखने को मिले। इस दौर में धातु खासकर कांस्य और संगमरमर जैसी स्थायी सामग्रियों का इस्तेमाल बढ़ा और मूर्तियों में साज-सज्जा का स्तर बढ़ने लगा।
- चालुक्य काल (6वीं – 8वीं शताब्दी)- इस काल में गणेश की प्रतिमाएं ज्यादा बड़ी और भव्य बनने लगीं। कर्नाटक स्थित बादामी और ऐहोल की गुफाओं से प्राप्त प्रतिमाएं इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। इनमें गणेश जी को काफी भव्य और सजे हुए मुकुट, समृद्ध आभूषण और ज्यादा जटिल मुद्राओं में दिखाया गया है।
- चोल काल (9वीं – 13वीं शताब्दी)- तमिलनाडु के चोल शासकों ने कांस्य मूर्तिकला को एक नया शिखर दिया। इस दौर की नटराज शिव की तरह गणेश की कांस्य प्रतिमाएं भी बेहद मशहूर हुईं। इनमें गणेश को नृत्य की मुद्रा में भी दिखाया गया है। इन मूर्तियों में शरीर की लचीली आकृति, काफी बारीक डिटेलिंग और गहनों की सज्जा देखने को मिलती है।
- क्षेत्रीय और विदेशी प्रभाव- भारतीय मूर्तिकला का प्रभाव पड़ोसी देशों में भी फैला। अफगानिस्तान के गरदेज में मिली 7वीं-8वीं शताब्दी की गणेश प्रतिमा इसका प्रमाण है। इसी तरह, नेपाल, कंबोडिया और इंडोनेशिया में गणेश की प्रतिमाएं काफी विशाल आकार और तांत्रिक प्रभाव वाली मिलती हैं। भारत के भीतर ही राजस्थान और मध्य भारत में गणेश को एक शक्तिशाली वीर के रूप में चित्रित किया गया। कहीं-कहीं आठ या सोलह भुजाओं वाले महागणपति के रूप भी देखे जा सकते हैं।
आधुनिक काल
आधुनिक काल में गणेश प्रतिमाओं के स्वरूप में सबसे बड़ा परिवर्तन सामग्री और शैली के स्तर पर आया। पारंपरिक मिट्टी, पत्थर और धातु के साथ-साथ अब प्लास्टर ऑफ पेरिस, पॉलिमर क्ले, रेजिन और फाइबर जैसी सामग्रियों का भी इस्तेमाल होने लगा है। सार्वजनिक गणेशोत्सव की बढ़ती लोकप्रियता ने प्रतिमाओं के आकार को काफी विशाल अलग-अलग संस्कृतियों को दर्शाता हुआ बना दिया है।