ऐतिहासिक नगरी आगरा की पारंपरिक शिल्पकला पच्चीकारी (मार्बल इनले वर्क) को अब आधिकारिक रूप से भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) की मान्यता मिल गई है। जीआई टैग की भाग ‘ए’ की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिसमें इस शिल्प को आगरा से जुड़ी विशिष्टता के रूप में पंजीकृत किया गया है। अब भाग ‘बी’ प्रक्रिया शुरू की गई है। जिसके पूरा होते ही इस कला से जुड़े उद्यमी और शिल्पकार अपने उत्पादों पर आधिकारिक रूप से जीआई टैग का प्रयोग कर सकेंगे।
पच्चीकारी वह अद्वितीय शिल्पकला है, जिसमें संगमरमर की सतह पर रंग-बिरंगे पत्थरों से महीन और जटिल डिजाइन बनाए जाते हैं। यह कला मुगल काल में आगरा में ही विकसित हुई और ताजमहल, एत्माद-उद-दौला और अन्य ऐतिहासिक स्मारकों में इसका भव्य रूप देखा जा सकता है।
अब लगी सरकारी मुहर
आगरा टूरिस्ट वेलफेयर चेंबर एवं हैंडीक्राफ्ट निर्माता के अध्यक्ष प्रहलाद अग्रवाल ने बताया कि सरकार से मिले जीआई टैग से स्पष्ट हो गया है कि पच्चीकारी कला पूर्णतः आगरा की धरोहर है। इससे कारीगरों और उद्यमियों को नई ऊर्जा मिलेगी, व्यापार बढ़ेगा। पहले जब हम निर्यात करते थे, तो आगरा का सिद्ध करना मुश्किल होता था।
आगरा टूरिस्ट वेलफेयर चेंबर एवं हैंडीक्राफ्ट निर्माता के अध्यक्ष प्रहलाद अग्रवाल ने बताया कि सरकार से मिले जीआई टैग से स्पष्ट हो गया है कि पच्चीकारी कला पूर्णतः आगरा की धरोहर है। इससे कारीगरों और उद्यमियों को नई ऊर्जा मिलेगी, व्यापार बढ़ेगा। पहले जब हम निर्यात करते थे, तो आगरा का सिद्ध करना मुश्किल होता था।
हमारे लिए गौरव का विषय
ओवरसीज ट्रेड लिंकर के स्वामी विवेक अग्रवाल का कहना है कि यह हमारे लिए गौरव का विषय है। जिस कला को पीढ़ियों से सहेजा, उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। अब जब भाग ‘बी’ की प्रक्रिया शुरू हो गई है, हमें अधिकार मिलेगा कि हम जीआई टैग का प्रयोग कर उत्पादों को प्रमाणिक रूप से प्रस्तुत कर सकें। इससे ब्रांड और मूल्य दोनों में वृद्धि होगी।
ओवरसीज ट्रेड लिंकर के स्वामी विवेक अग्रवाल का कहना है कि यह हमारे लिए गौरव का विषय है। जिस कला को पीढ़ियों से सहेजा, उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। अब जब भाग ‘बी’ की प्रक्रिया शुरू हो गई है, हमें अधिकार मिलेगा कि हम जीआई टैग का प्रयोग कर उत्पादों को प्रमाणिक रूप से प्रस्तुत कर सकें। इससे ब्रांड और मूल्य दोनों में वृद्धि होगी।