नई दिल्ली
कांग्रेस के लिए दक्षिण के दो महत्वपूर्ण राज्यों कर्नाटक तथा तेलंगाना में अपनी सरकारों में चल रहे सत्ता सियासत की अंदरूनी रस्साकशी को साधना आसान नहीं हो रहा है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और डिप्टी सीएम तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच चल रहा सत्ता पर नियंत्रण का दांव-पेंच पार्टी नेतृत्व की सिरदर्दी बना हुआ है।
कांग्रेस के लिए चुनौती घरेलू कलह
वहीं तेलंगाना में भी नेताओं-विधायकों की सत्ता में हिस्सेदारी के जोर मारते उबाल को थामे रखना चुनौती के रूप में उभर रही है। मुख्यमंत्री रेवंत रेडडी की अपनी कैबिनेट के पहले बहुप्रतीक्षित विस्तार में भी इसकी झलक दिखी जब छह की जगह केवल तीन विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई और भविष्य की सियासत को साधने का विकल्प बना रहे।
तेलंगाना और कर्नाटक की कांग्रेस सरकारों के लिए अपने स्थानीय नेताओं की दावेदारी और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की स्वाभाविक चुनौतियां तो है ही। साथ ही उनके सामने दोहरी चुनौती कांग्रेस की राष्ट्रीय सियासत में नीतिगत तथा राजनीतिक विमर्श को भी जगह देना है।
कर्नाटक की 2015 की जातीय जनगणना रिपोर्ट को ठंढ़े बस्ते में
जातीय जनगणना तथा आबादी के हिसाब से भागीदारी का राहुल गांधी का सामाजिक न्याय के एजेंडे की सियासत को आगे बढ़ाना इसमें जाहिर तौर पर दोनों सरकारों के लिए प्राथमिकता में है।
कर्नाटक की 2015की जातीय जनगणना रिपोर्ट को ठंढ़े बस्ते में डालकर नए सिरे से सामाजिक-आर्थिक आधार पर जातिवार जनगणना कराने की घोषणा हो या फिर तेलंगाना में पिछले रविवार को हुआ कैबिनेट विस्तार में शामिल किए गए तीन मंत्रियों का चयन सब कुछ इसी हिसाब से हुआ है।
तेलंगाना में जिन तीन विधायकों को मंत्री बनाया गया है उसमें दो दलित तथा एक ओबीसी वर्ग के हैं। जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग को साधने के लिए रामचंद्र नायक को विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बनाया गया है।
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी कांग्रेस हाईकमान को राजी नहीं कर पाए
बताया जाता है कि इस क्रम में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी तमाम प्रयासों के बावजूद अपनी एक पसंद पी सुदर्शन रेडडी को मंत्री बनाने के लिए हाईकमान को राजी नहीं कर पाए।
दरअसल मंत्रिमंडल विस्तार के लंबे समय से लटकने की वजह तेलंगाना के पुराने कांग्रेसी नेताओं तथा रेवंत समर्थकों की दावेदारी ही नहीं पार्टी की सामाजिक न्याय की राजनीति का नया दांव भी रहा।
यही वजह रही कि मार्च महीने के आखिर में पार्टी हाईकमान से हरी झंड़ी मिल जाने के बावजूद रेवंत को अपने मंत्रिमंडल विस्तार के लिए दो महीने लग गए और फिर भी अपनी पसंद का एक भी चेहरा शामिल नहीं कर पाए।
अंदरूनी खींचतान कांग्रेस पर भारी ना पड़ जाए
दिलचस्प यह भी है कि रेवंत जिस सुदर्शन रेड्डी को कैबिनेट में लाकर गृहमंत्री बनाना चाहते थे उनका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बी महेश कुमार गौड़ भी विरोध कर रहे थे।
वहीं विधानसभा चुनाव के समय सत्ता में भागीदारी की महत्वाकांक्षा से कांग्रेस में वापस लौटे कोमाटीरेड्डी राजगोपाल रेड्डी जैसे कुछ विधायकों को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है और ऐसे में अंदरूनी खींचतान सहजता से थमने के आसार नहीं है। शायद इसके मद्देनजर ही तेलंगाना मंत्रिमंडल के तीन पद रिक्त रखे गए हैं कि सियासी चुनौती जैसे-जैसे करवट लेगी उसी हिसाब से नेताओं को साधने का प्रयास किया जाएगा।