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‘अस्तित्व पर खतरे’ की बात आई तो घातक हुआ इजरायल का हमला, ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने की खाई कसम

इजरायल ने शुक्रवार की सुबह ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमले किए हैं। हमले में ईरान के कई शीर्ष कमांडर भी मारे गए हैं। आइये जानते हैं कि कभी गुप्त रिश्ते रखने वाले ईरान और इजरायल एक दूसरे के जानी दुश्मन क्यों बन गए हैं और इस हमले के पीछे इजरायल का क्या मकसद है?

इजरायल और ईरान क्यों हैं दुश्मन

ईरान की 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद नेतृत्व ने तुरंत अमेरिका और इजरायल को अपने मुख्य शत्रु के रूप में पहचाना। इसकी वजह इस्लामी क्रांति से पहले ईरान के शासकों की अमेरिका और पश्चिमी देशों से करीबी थी। 1948 में इजरायल की स्थापना होने पर ज्यादातर मुस्लिम देश ने उसे मान्यता देने से मना कर दिया। अरब देशों के साथ असहज रिश्ते रखने वाला शिया बहुल देश ईरान इसका अपवाद था।
ईरान ने इजरायल को आधिकारिक तौर पर तो मान्यता नहीं दी लेकिन साझा रणनीतिक चिंताओं की वजह से दोनों ने गुप्त रिश्ते रखे। शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन में ईरान ने शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों के अनुकूल विदेश नीति अपनाई। उसका अहम क्षेत्रीय सहयोगी अमेरिका था।
इजरायल अमेरिका के साथ समर्थन पर निर्भर था, ऐसे में उस समय उसने ईरान को अपना स्वाभाविक सहयोगी माना। ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रजा पहलवी इस्लामी क्रांति से पहले नए नेताओं की उपेक्षा की वजह से देश से भाग गए थे। उस समय वह गंभीर रूप से बीमार थे।

परमाणु हथियार विकसित करने का आरोप

पिछले दो दशकों में इजरायल ने बार-बार ईरान पर परमाणु हथियार विकसित करने का आरोप लगाया है। ईरान का कहना है कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए आगे बढ़ा रहा है लेकिन संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी एजेंसी के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि तेहरान के पास परमाणु बम बनाने के लायक पर्याप्त यूरेनियम है और इससे वह कई परमाणु बम बना सकता है।

इजरायल के अस्तित्व को खतरा

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएईए) और पश्चिमी देशों का आकलन है कि ईरान के पास 2003 तक एक संगठित परमाणु हथियार कार्यक्रम था। ईरान का कहना है कि उसका कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, जबकि वह अभी भी हथियार-स्तर के करीब यूरेनियम को समृद्ध कर रहा है।

अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने आकलन किया है कि ईरान बम बनाने का प्रयास नहीं कर रहा था। इजरायल परमाणु शक्ति संपन्न ईरान को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। ईरान के हमास, हिजबुल्लाह और हाउती जैसे प्राक्सी समूहों के क्षेत्रीय नेटवर्क को तोड़ना इजरायल का प्रमुख लक्ष्य रहा है।

प्रतिरोध की धुरी हुई है कमजोर

पिछले चार दशकों में ईरान ने आतंकी प्राक्सी समूहों का एक नेटवर्क बनाया है, जिसे उसने प्रतिरोध की धुरी कहा। गाजा में हमास, लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हाउती और इराक और सीरिया में छोटे मिलिशिया हाल के वर्षों में पूरे क्षेत्र में प्रभावी थे लेकिन 7 अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर हमला करने के बाद छिड़े व्यापक संघर्ष में यह धुरी कमजोर हो गई है।

इजरायल का ईरान सबसे मजबूत प्रॉक्सी

हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ सैन्य अभियान चला कर इनकी कमर तोड़ दी है। सीरिया में ईरान के लंबे समय से सहयोगी रहे राष्ट्रपति बशर असद का पतन हो चुका है।

पिछले वर्ष इजरायल में ईरान के मिसाइल हमलों के बाद इजरायल ने उसके मिसाइल साइट्स को तबाह करने के साथ ईरान की एयर डिफेंस क्षमताओं को भी कमजोर कर दिया था। ईरान के प्राक्सी नेटवर्क के पतन के साथ-साथ ईरान की नई कमजोरी ने इजरायल को हमला करने का अवसर दिया।

अब इजरायल ने हमले का फैसला क्यों किया

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने कहा है कि ईरान पर हमला करने का समय खत्म हो रहा था। उन्होंने आरोप लगाया कि ईरान ने हाल में परमाणु हथियार बनाने के लिए कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि अगर इसे रोका नहीं गया, तो ईरान बहुत कम समय में परमाणु हथियार बना सकता है।

इस बीच अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु वार्ता ने एक मौका दिया था लेकिन अपेक्षित नतीजे नहीं निकले। अगर समझौता हो जाता तो अमेरिका ईरान पर कुछ कठोर आर्थिक प्रतिबंधों को हटा सकता था। ऐसे में इजरायल के लिए ईरान पर हमला करना बहुत कठिन हो जाता। इजरायली अधिकारियों को डर था कि इस वार्ता से ईरान को समय मिल रहा है और वह परमाणु बम बनाने की दिशा में आगे बढ़ कदम बढ़ा रहा है।

आइएईए ने की ईरान की निंदा

गुरुवार को 20 वर्षों में पहली बार आइएईए के बोर्ड आफ गवर्नर्स ने अपने निरीक्षकों के साथ काम नहीं करने के लिए ईरान की निंदा की। ईरान ने तुरंत घोषणा की कि वह तीसरा संवर्धन स्थल स्थापित करेगा और कुछ सेंट्रीफ्यूज को अधिक उन्नत सेंट्रीफ्यूज से बदल देगा। तब तक इजरायल ने हमले का फैसला कर लिया था।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने नेतन्याहू से वार्ता जारी रहने तक ईरान पर हमला न करने को कहा है लेकिन ट्रंप का इजरायल को समर्थन देने का पुराना रिकॉर्ड रहा है और ऐसा लगता है कि इस हमले के लिए भी इजरायल को अमेरिका का पूरा समर्थन है।

 

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