डॉ. जैन ने कहा कि दिवाली, होली आदि हिंदू त्योहारों पर तथाकथित पर्यावरण प्रेमी पत्रकार, बुद्धिजीवी हिंदुओं को सांकेतिक रूप में या इको फ्रेंडली होली दिवाली मनाने का आह्वान करते हैं। कुछ जगह न्यायपालिका का एक वर्ग भी स्वत: संज्ञान लेकर उपदेशात्मक आदेश भी देता देखा गया है। किंतु, एक ही दिन में करोड़ों मासूम बकरों की क्रूर हत्या पर ये सभी कथित पर्यावरण विद् चुप्पी क्यों साध लेते हैं? इसके कारण पूरे देश का शाकाहारी और संवेदनशील समाज गुस्से में है।
उन्होंने पूछा कि हिंदुओं को होली, दिवाली पर उपदेश देने वाले भला अभी तक इको फ्रेंडली बकरीद या अहिंसक सांकेतिक बकरीद का आह्वान क्यों नहीं कर पा रहे हैं? ऐसा लगता है कि ये सभी लोग हिंदू विरोधी इको सिस्टम का हिस्सा हैं ! पर्यावरण की रक्षा केवल इनका एक बहाना है, इनका असली उद्देश्य तो सिर्फ हिंदुओं को अपमानित करना ही है।
डा. जैन ने चुनौती भरे लहजे में कहा कि बकरों की हत्या को कुछ लोग अपना कानूनी व धार्मिक अधिकार बताते हैं। मैं उनको चुनौती देता हूं कि वह बताएं कि कुरान के किस हिस्से में मासूम बकरों की कुर्बानी देने का आदेश दिया गया है। धार्मिक अधिकार के नाम पर मानवता को कैसे आतंकित किया जा सकता है?
उन्होंने यह भी कहा कि यह भारत के कानूनी और संवैधानिक प्रविधानों का भी उल्लंघन है।
कुछ कट्टरपंथी संविधान की अनुच्छेद 25 के अंतर्गत मिले अधिकारों की बात तो करते हैं लेकिन वे भूल जाते हैं कि यही प्रावधान सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य की रक्षा की बात भी करता है। बकरीद की परंपरा से इन तीनों का उल्लंघन किया जाता है।
संविधान का अनुच्छेद 48 पशुओं के संरक्षण और पालन की बात करता है। गुजरात, मुम्बई, उत्तराखंड आदि कई उच्च न्यायालयों ने स्पष्ट रूप से सार्वजनिक स्थलों पर कुर्बानी को वर्जित भी किया है। इसलिए यह कहना कि यह उनका कानूनी और धार्मिक अधिकार है, यह पूर्ण रूप से गलत है।
ईद आजकल कुर्बानी के नाम पर क्रूर हिंसा का खुला प्रदर्शन और वहां के सभ्य समाज को आतंकित करने का एक माध्यम सा भी बन गई है। बाकी सब धर्म की परंपराओं में मानवीय जीवन मूल्यों को ध्यान में रखकर सुधार किए गए हैं।
सभी सभ्य समाज कुर्बानी जैसी बर्बर परंपरा को छोड़ रहे हैं। जिस तरह की चुनौतियां कुछ मुस्लिम नेताओं द्वारा दी जा रही है ऐसा लगता है कि वे संवेदनशील समाजों को आतंकित करना चाहते हैं।
हिंदू समाज इन गीदड़ भभकियों से डरेगा नहीं और किसी भी सार्वजनिक स्थल पर मासूम जीवों की अवैध रूप से क्रूर हत्या नहीं होने देगा। हिंदू समाज अपनी भावनाओं व संविधान के प्रविधानों की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहा है।
वह उम्मीद करता है कि मुस्लिम नेता और तथाकथित पर्यावरण प्रेमी भी सभ्य समाजों की भावनाओं का सम्मान करेंगे और सांकेतिक एवं अहिंसक ईद मनाने का आह्वान कर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।