आज हम बात कर रहे हैं उस राजनीतिक खेल की, जिसमें चेहरे बनाए जाते हैं—कभी मोदी का, तो अब शायद राहुल गांधी का।
2014 से पहले देश में एक माहौल तैयार किया गया था। एक ऐसा माहौल जिसमें नरेंद्र मोदी को इस देश का तारणहार बताया गया, एक ऐसा नेता जो गुजरात से निकला और देश को विश्वगुरु बना सकता है। लेकिन सवाल यह है कि यह छवि बनाई किसने?
ज़ाहिर है, उस समय सोशल मीडिया का उतना प्रभाव नहीं था, इसलिए यह पूरी जिम्मेदारी मुख्यधारा मीडिया—टीवी चैनल और अखबारों—ने उठाई। अन्ना हज़ारे के आंदोलन ने इसे एक मजबूत आधार दिया। लोकपाल विधेयक, भ्रष्टाचार पर लगाम जैसे मुद्दे जनता के दिलों को छू गए। और यह आंदोलन कांग्रेस विरोध की लहर में बदल गया।
बीजेपी ने इस मौके को पूरी चतुराई से भुनाया और नरेंद्र मोदी को उस उम्मीद की तरह पेश किया गया जो देश को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएगा। जनता तैयार थी, कांग्रेस से नाखुश थी, और मोदी ने 2014 में ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
लेकिन उसके बाद क्या हुआ?
15 लाख रुपये हर खाते में आने की बात एक जुमला बनकर रह गई। विदेशों से काला धन लाने की बात हो या महिला सुरक्षा का वादा—सारे वादे हवा में उड़ते नज़र आए। महिलाओं की सुरक्षा की बात करने वाली सरकार में आज भी बेटियां असुरक्षित हैं। निर्भया जैसी घटनाएं थमने की बजाय नए नामों के साथ दोहराई जा रही हैं।
नोटबंदी आई—बात हुई कि इससे आतंकवाद खत्म होगा, काला धन नष्ट होगा। लेकिन हुआ क्या? गरीब पिसा, मिडिल क्लास तबाह हुआ और जो काला धन था, वो या तो सफेद हो गया या बच निकलने वालों के पास चला गया।
आज वही प्रक्रिया दोहराई जा रही है—लेकिन इस बार चेहरा बदला है।
अब मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया, राहुल गांधी को एक मज़बूत विपक्ष के नेता के रूप में पेश कर रही है। वही राहुल गांधी जिन्हें कभी ‘पप्पू’ कहकर मज़ाक उड़ाया जाता था, आज उन्हें एक संभावित प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
आज राहुल गांधी सरकारी स्कूलों में अंग्रेज़ी पढ़ाने की बात करते हैं, सरकारी शिक्षा में सुधार की बात करते हैं, फोन-इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाओं की बात करते हैं। लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेस ने दशकों तक देश पर शासन किया, तब इन मुद्दों पर क्यों चुप्पी थी? सरकारी स्कूलों की हालत पहले क्यों नहीं सुधारी गई? डिजिटल भारत का सपना पहले क्यों नहीं देखा गया?
दूसरी ओर, अगर जापान जैसे देश को देखें, जो हमारी आज़ादी के कुछ ही समय बाद स्वतंत्र हुआ और जिस पर न्यूक्लियर हमला भी हुआ, प्राकृतिक आपदाएं भी लगातार आती रही, लेकिन फिर भी आज वो एक एडवांस्ड और विकसित देश है। वहीं भारत आज भी बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी चीज़ों के लिए संघर्ष कर रहा है।
यह सवाल सिर्फ राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी पर नहीं है—यह सवाल है उस सिस्टम पर, उस राजनीति पर जो चेहरों को बनाती है, और वादों को जुमलों में बदल देती है।
आज जरूरत है आंखें खोलने की। चेहरे नहीं, मुद्दे पहचानने की। क्योंकि एक बार फिर जनता को वही पुराना खेल दिखाया जा रहा है—बस इस बार नया चेहरा लगाकर।
लेखक
मोहित कुमार