जगुआर लड़ाकू विमान कितना खतरनाक है? इसका भारत में क्या इतिहास है? इसे किसने बनाया है और इसकी खूबियां क्या हैं? भारतीय वायुसेना कब से इस फाइटर जेट का इस्तेमाल कर रही है और इसने कब-कब देश को संघर्ष के मैदान पर बढ़त दिलाई है?
हरियाणा में शुक्रवार को बड़ा हादसा टल गया। यहां पंचकूला में मोरनी के बालदवाला गांव के पास भारतीय वायुसेना का जगुआर विमान क्रैश हो गया। बताया गया है कि विमान ने प्रशिक्षण उड़ान के लिए अंबाला एयरबेस से उड़ान भरी थी। पायलट ने दुर्घटना से ठीक पहले इससे कूदकर अपनी जान बचाई।
पहले जानें- क्या है जगुआर विमान?
एसईपीईसीएटी (SEPECAT) जगुआर एक कम ऊंचाई पर उड़ने वाला सुपरसॉनिक (आवाज की गति से तेज रफ्तार वाला) लड़ाकू विमान है। इसके उत्पादन के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने साझेदारी की थी। 1960 में पहली बार इसे बनाने की तैयारी शुरू हुई और 1968 से लेकर 1981 तक इसका उत्पादन किया गया। शुरुआती दौर में इसे ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स और फ्रांस की वायुसेना ने इस्तेमाल किया। इस लड़ाकू विमान को अमेरिका-रूस के बीच शीत युद्ध के मद्देनजर परमाणु क्षमताओं के इस्तेमाल लायक बनाया था।
विदेशी बाजार में जगुआर को उम्मीद के मुताबिक खरीदार नहीं मिले, लेकिन भारत, ओमान, इक्वाडोर और नाइजीरिया में वायुसेनाओं ने इस लड़ाकू विमान को काफी पसंद किया। इन देशों ने अपने अलग-अलग सैन्य अभियानों में जगुआर का इस्तेमाल भी किया। खासकर भारत ने तो दो अलग-अलग मौकों पर जगुआर के जरिए पाकिस्तान को खदेड़ा।
क्या हैं जगुआर की खासियतें?
- जगुआर हाई-विंग लोडिंग डिजाइन की वजह से कम-ऊंचाई पर एक स्थिर उड़ान भर सकता है। इससे यह रडार की पकड़ में आने से भी बचता है।
- अपने डिजाइन की वजह से जगुआर जंगी हथियारों को आसानी से ले जा सकता है। विमान के विंग स्पैन पर लगे पंखों से इसे शानदार ग्राउंड क्लीयरेंस मिलता है।
- जगुआर एक मल्टीरोल फाइटर जेट है, जो एयर-टू-ग्राउंड, एयर-टू-एयर, और एंटी-शिप मिसाइलों से लैस है, इसमें परमाणु हथियारों से हमला करने की भी क्षमता है।
- इसमें घातक हथियार भी मौजूद हैं। इससे जमीनी हमले, हवाई क्षेत्र की रक्षा, और नौसैन्य हमलों को अंजाम देने की क्षमताएं हैं।
- जगुआर सिंगल सीटर, डबल इंजन एयरक्राफ्ट है।. इसके ट्रेनर प्रारूप में दो पायलटों को बिठाने की भी व्यवस्था है।
- ये फाइटर जेट एक बार में 900-1000 किमी तक उड़ान भर सकता है, लेकिन इसकी खास क्षमता रडार की पकड़ में आए बिना जमीन के करीब उड़ान भरने की है, जिसमें जगुआर 650 किमी तक उड़ सकता है।
भारतीय वायुसेना में क्या रहा है जगुआर का इतिहास?
भारत को पहली बार जगुआर लड़ाकू विमान का प्रस्ताव 1968 में इसका उत्पादन शुरू होने के साथ ही मिला था। हालांकि, तब भारत ने झिझकते हुए इसे खरीदने से मना कर दिया था। बताया जाता है कि तब भारत में इसकी सफलता को लेकर कई संशय थे। खुद फ्रांस और ब्रिटेन ने इसे खरीदने को लेकर कोई सीधा बयान नहीं दिया था।हालांकि, 1978 में भारत जगुआर विमान खरीदने वाला सबसे बड़ा आयातक बन गया। तब भारत की तरफ से जगुआर के लिए 1 अरब डॉलर का ऑर्डर दिया गया था। भारत ने इसे दसौ के मिराज एफ1 और साब के विगेन के ऊपर तरजीह दी थी। भारत ने 40 जगुआर विमानों के जरिए वायुसेना को मजबूत करने की कोशिशें शुरू कर दीं।