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जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित किया जाएगा या नहीं? दिल्ली HC ने सुनाया अहम फैसला

ऐतिहासिक जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मौखिक रूप से कहा कि अदालत ऐसा करने की इच्छुक नहीं है। न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह व न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने कहा कि वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के रुख को देखते हुए जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने के इच्छुक नहीं है।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं को इसके लिए उठाए जाने वाले कदमों के संबंध में अपने नोट दाखिल करने का आदेश देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी। अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब एएसआई (ASI) ने पीठ को बताया कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने से ‘पर्याप्त प्रभाव’ पड़ेगा और इस संबंध में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।

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जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग

अदालत सुहैल अहमद खान और अजय गौतम द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें जामा मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी द्वारा शाही इमाम उपाधि के इस्तेमाल और उनके बेटे को नायब (उप) इमाम के रूप में नियुक्त करने पर आपत्ति जताई गई है।याचिकाओं में सरकार से जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने और उसके आसपास सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिकाओं में यह भी सवाल उठाया गया है कि जामा मस्जिद एएसआइ के अधीन क्यों नहीं है।

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इस मसले पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कही ये बात

मामले में दाखिल हलफनामे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा कि एक बार जब किसी स्मारक को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया जाता है, तो उसके आसपास के क्षेत्र में कुछ नियम और निषेध लागू हो जाते हैं।

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यह भी कहा कि हालांकि मुगलकालीन जामा मस्जिद (Mughal era Jama Masjid) वर्तमान में दिल्ली वक्फ बोर्ड (Delhi Waqf Board) के संरक्षण और संरक्षकता में है, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वहां संरक्षण का काम कर रहा है।

‘संरक्षित स्मारक घोषित करने का कई तरह से प्रभाव’

पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) के बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि एएसआई के रुख से स्पष्ट है कि इसे संरक्षित स्मारक घोषित करने का कई तरह से प्रभाव होगा। पीठ ने कहा कि इसके बावजूद वह मस्जिद के प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के मुद्दे पर गौर करेगी।

 

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