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अखिलेश ने चाचा को क्यों किया दरकिनार?:10 मिनट में माता प्रसाद का नाम तय हुआ, सपा ने नेता प्रतिपक्ष बनाकर क्या साधा

लखनऊ

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लोकसभा जाने के बाद यूपी में सबसे ज्यादा चर्चा नेता प्रतिपक्ष के चेहरे को लेकर थी। पहले तीन नाम सामने आए। पहला- शिवपाल यादव, दूसरा- इंद्रजीत सरोज और तीसरा- तूफानी सरोज।

बैठक में इन नामों पर चर्चा भी हुई। माता प्रसाद पांडेय के नाम की दूर-दूर तक चर्चा नहीं थी, लेकिन अखिलेश ने सबको चौंकाते हुए महज 10 मिनट में पार्टी के पुराने नेताओं में शामिल 81 साल के माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष का पद दे दिया। घोषणा के समय शिवपाल यादव नहीं थे।

सबसे पहले जानिए बैठक में क्या हुआ?
अखिलेश यादव ने विधायकों के साथ बैठक करने के बाद अपने करीबियों के साथ एक और 10 मिनट की बैठक की। बैठक में शिवपाल यादव और माता प्रसाद पांडेय दोनों नहीं थे। वे पहले ही पार्टी मुख्यालय से निकल गए थे। इस बैठक में पहले इंद्रजीत सरोज का नाम आया तो कहा गया कि वह बसपा से पार्टी में आए हैं। पुराने समाजवादियों के साथ इनका तालमेल बन पाएगा या नहीं, इस पर संदेह है।

कहा गया कि अगर दलित समाज के ही नेता को बनाया जाना है तो क्यों न तूफानी सरोज को बनाया जाए। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुकाबला करने के लिए वह फिट नहीं थे। पार्टी नेताओं ने कहा- कई विधायक उनसे वरिष्ठ हैं, सदन में कहीं ऐसा न हो कि अन्य नेताओं से राय अलग हो और विधानसभा में पार्टी की किरकिरी हो।

फिर नाम शिवपाल यादव का भी आया, लेकिन उनके नाम पर सहमति नहीं बन सकी। कहा गया कि परिषद में पहले से ही यादव जाति के नेता प्रतिपक्ष बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा परिवारवाद के मुद्दे पर सत्ता पक्ष को एक बार फिर अखिलेश यादव को घेरने का मौका मिल जाएगा। फिर नाम सामने आया माता प्रसाद पांडेय का।

इनके नाम पर ज्यादातर नेताओं ने सहमति व्यक्त की, लेकिन इनकी उम्र को लेकर सवाल भी उठा। तय किया गया कि फिलहाल इन्हीं को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाए। फैसला होते ही तत्काल आदेश जारी करने को कहा गया, क्योंकि चार बजे से विधानसभा में सर्वदलीय बैठक थी। इसमें समाजवादी पार्टी की नुमाईंदगी के लिए नेता प्रतिपक्ष को शामिल होना था।

अब जानिए माता प्रसाद ही क्यों…

1- सपा इस समय PDA यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक की बात कर रही है। इसको लेकर पार्टी और बाहर एक मैसेज जा रहा था कि पार्टी अगड़ों (ब्राह्मण-ठाकुर-वैश्य) को दरकिनार कर रही है। माता प्रसाद पांडेय की इस नियुक्ति से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि पार्टी A to Z यानी सबकी की चिंता करती है।

2- यूपी में लगभग 12 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण वोटर्स हैं। कई विधानसभा में ये प्रभावी हैं। भाजपा पहले से ही ब्राह्मण जाति से एक उप मुख्यमंत्री बनाकर साधती रही है। अब अखिलेश ने भी इस पर दांव खेला है।

3- सपा के विधायक मनोज पांडेय, राकेश पांडेय और विनोद चतुर्वेदी बगावत कर चुके हैं। इससे ब्राह्मण में मैसेज गया है कि उनके नेताओं को अनदेखी की जा रही है। इस पर भी रोक लगेगी।

4- माता प्रसाद पांडेय की गिनती सपा के सबसे पुराने नेताओं में होती है। वह मुलायम सिंह के साथ रहे हैं। दो बार विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं। इसलिए उनका विरोध पार्टी में नहीं हो सकता।

5- माता प्रसाद पांडेय का शिवपाल यादव से भी अच्छे संबंध हैं, इसलिए चाचा नाराज भी नहीं हो सकते।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट शाहिरा नईम के मुताबिक, पीडीए दिखने की उम्मीद थी। इसमें पीडीए नहीं दिखा। जब नए तरीके की पॉलिटिक्स की जा रही है, तो उसे जारी रखनी चाहिए थी। उम्मीद की जा रही थी कि नेता प्रतिपक्ष पीडीए से कोई होगा, लेकिन शायद यहां I.N.D.I.A का आई यानी इंक्लूसिव (सभी के लिए समान अवसर) लिया गया है। लगता है अन्य जातियों में बैलेंस बनाने के लिए माता प्रसाद पांडेय को चुना गया। इसका विधानसभा उप चुनाव में कोई खास फायदा या असर, मुझे नहीं लगता कि पड़ेगा।

शिवपाल के नाम पर मुहर न लगाने के पीछे ये 3 कारण

1- सपा पर पहले से ही परिवारवाद का आरोप लगता रहा है। लोकसभा से यादव परिवार से 5 सदस्य लोकसभा में उतरे, तब भी सवाल हुआ था। इसलिए अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव के नाम पर सहमति नहीं दी।

2- विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को एक बार फिर नेता प्रतिपक्ष 22 जुलाई को बनाया गया। अगर शिवपाल यादव को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता तो भाजपा को मुद्दा बनाने का मौका मिल जाता।

3- सपा को करीब से जानने वाले मानते हैं कि अखिलेश पार्टी में अब दो केंद्र नहीं चाहते थे। वह अपने पिता मुलायम सिंह वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे। इसलिए पार्टी में शिवपाल को ज्यादा मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव हैं। ऐसे में विधानसभा में भी शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अखिलेश यादव यह संदेश बिल्कुल नहीं देना चाहते थे कि उन पर जो हमेशा से यादववाद और परिवारवाद का आरोप लगाता रहा है, वह लगे। इस फैसले से न तो शिवपाल के सम्मान में कोई कमी आने जा रही है और न ही उनके कद में कोई कमी आ रही है। लोग अनावश्यक रूप से इसे पारिवारिक कलह के तौर पर दिखाना चाहते हैं, जो मेरी समझ से बिल्कुल नहीं है। अखिलेश यादव के इस निर्णय को मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देख सकते हैं।

क्या अखिलेश इन नियुक्तियों से पीडीए भी साध गए?
कमाल अख्तर को विधानसभा में पार्टी का मुख्य सचेतक बनाया गया है। अमरोहा सीट से विधायक महबूब अली को अधिष्ठाता और राकेश कुमार वर्मा को उप सचेतक बनाया है। अखिलेश ने इससे PDA के P यानी पिछड़ा और A यानी अल्पसंख्यक को साध लिया।

 

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