बॉम्बे हाईकोर्ट में आदिवासी विकास कार्यों और योजनाओं को रोके जाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई। खबर है कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की ईमानदारी पर सवाल उठा रही बातों को याचिका से हटाने से निर्देश दिए हैं। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर सरकार के फैसलों से आदिवासियों के अधिकारों का हनन होता है, तो अदालत ऐसे अधिकारों की रक्षा के लिए निर्देश जारी करने की ताकत रखता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस माधव जामदार ने कहा, ‘हर संवैधानिक पदाधिकारियों को सम्मान दिया जाना जरूरी है।’ मामले में आदिवासी कार्यकर्ता गोपाल लहांगे की तरफ से याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने लहांगे को सीएम, डिप्टी सीएम और आदिवासी विकास, सामाजिक कल्याण और न्याय, ग्रामीण विकास और PWD मंत्रियों को उत्तर देने वालों की सूची से हटाने के लिए कहा है।
याचिका में क्या था?
लहांगे की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि 9 जून को महाविकास अघाड़ी ने आदिवासी जिलों में आश्रम स्कूलों के निर्माण के लिए चार सरकारी प्रस्ताव जारी किए थे। उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से सरकार गिर गई और नई ने काम संभाला।’ याचिकाकर्ता ने आरोप लगाए हैं कि पद संभालते हैं कि सीएम ने मुख्य सचिव एमके श्रीवास्तव के जरिए कुछ आदेश जारी किए और 4 जुलाई को काम और योजना पर रोक लगा दी गई।
उन्होंने कहा कि 18 जुलाई को सीएम के ‘विशेष निर्देशों पर’ श्रीवास्तव ने सभी कामों पर रोक लगा दी थी, जिन्हें मंजूरी मिल गई थी, लेकिन टेंडर जारी नहीं किए गए थे। 21 जुलाई को आदिवासी कल्याण विभाग के जीआआर ने सभी पूंजीगत खर्चों पर रोक लगा दी।
याचिका में कहा गया है कि आदिवासी आश्रम स्कूलों पर पूंजीगत खर्च रोकने से आदिवासी इलाकों में बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है।
आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा है, ‘अगर सरकार की तरफ से लिए गए फैसले आदिवासियों के अधिकारों का हनन होता है, तो यह कोर्ट ऐसे अधिकारों की रक्षा के लिए उचित निर्देश जारी करने के लिए शक्तिहीन नहीं है।’ मामले पर 17 नवंबर को अगली सुनवाई होगी। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि HC राजनीतिक हिसाब पूरा करने के लिए नहीं है।