आगरा
एसएन मेडिकल कालेज के मनोरोग विभाग में भर्ती महिला को शक है कि उसके घर में हमशक्ल रिश्तेदार हैं। उस पर नजर रखने के लिए उन्हें घर पर छोड़ा है। इससे वह उग्र हो गई और स्वजनों से मारपीट करने लगी। शक की बीमारी ही सिजोफ्रेनिया है, केमिकल लोचा (डोपामिन न्यूरोट्रांसमिटर के स्तर में असंतुलन) से यह बीमारी हो रही है।
अनुवांशिक, तनाव सहित कई अन्य कारण से डोपामिन स्तर में असंतुलन से सिजोफ्रेनिया की बीमारी हो रही है। इसमें कान में आवाज आती हैं, शक होने लगता है। यह बीमारी पुरुषों में पढ़ाई और करियर के समय में होती है, इसे वह गंभीरता से नहीं लेते हैं। उन्हें लगता है कि पढ़ाई के तनाव के कारण समस्या हो रही है। ऐसे में इलाज न होने पर बीमारी बिगड़ती जाती है। वहीं, महिलाओं में 30 साल की उम्र के बाद बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं, शक की आदत से वैवाहिक जीवन में विवाद शुरू हो जाता है। महिलाओं में इलाज के रिजल्ट अच्छे हैं।
एक अनुमान के तहत जिले में 52 हजार लोगों को सिजोफ्रेनिया की समस्या हो सकती है। मगर, वे इसे समझ नहीं पाते हैं। इसलिए इलाज भी नहीं करा रहे हैं। 30 प्रतिशत मरीज ही सिजोफ्रेनिया का इलाज करा रहे हैं।