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मजूदर दिवस: आगरा में 46 हजार श्रमिकों को भाया अपना गांव, रोजी-रोटी के लिए दोबारा नहीं गए ‘परदेस’

आगरा

कोरोना महामारी के उस दौर में सैकड़ों मील पैदल सफर कर घर पहुंचे प्रवासी मजदूरों को जब गांव व आसपास ही रोजगार मिल गया तो वह पलायन भूल गए। दोबारा ‘परदेस’ जाने के बारे में अब सोच भी नहीं रहे। आंकड़े बताते हैं कि आगरा जिले के 15 ब्लॉक में करीब 46 हजार श्रमिक मनरेगा से रोजगार पाकर अच्छा जीवन जी रहे हैं। इस वजह से उन्होंने दोबारा नौकरी के लिए गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, नोएडा, पंजाब का रुख नहीं किया।

मार्च, 2020 में कोरोना की महामारी आई। अप्रैल में लॉकडाउन लगा। पूरा देश थम गया। ऐसे में काम के लिए परदेस पलायन करने वाले हजारों श्रमिक बेबस हो गए। काम बंद हुए, तो रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। कोई उम्मीद नहीं बची, तो घर याद आया और सैकड़ों मील पैदल सफर कर अपनों के बीच पहुंचे। यहां मनरेगा में जॉब कार्ड बनवाकर गांव व आसपास ही काम में जुट गए। करीब 46 हजार श्रमिकों के घर मनरेगा से चूल्हा जला। 

गुजरात से लौटे रामपाल सिंह का कहना है कि थोड़ा खा लेंगे, लेकिन परदेस नहीं जाएंगे। मनरेगा में काम से खुश हैं। बाकी खेतीबाड़ी से काम चल जाता है। मार्च 2020 से पहले जिले के 15 ब्लॉक में 1.65 लाख मनरेगा श्रमिक जॉब कार्ड थे, जो अप्रैल 2022 में 2.11 लाख हो गए हैं। मुख्य विकास अधिकारी ए मनिकंडन का कहना है कि महामारी में लौटे प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा में अभियान चलाकर जॉब कार्ड बनाकर रोजगार दिया गया। अब वे यहीं खुश हैं लिहाजा दोबारा काम के लिए दूसरे प्रदेश नहीं गए।

बिजली व मोटर मिस्त्री, बढ़ई, हलवाई का कार्य करने वाले 2500 लोग भी महामारी में आगरा लौटे थे। प्रशिक्षण देकर इनके हुनर को निखारा गया। इनमें 2400 से अधिक लोग सेवायोजन में पंजीकृत हुए हैं। काम में पेशेवर दक्षता आने से कई लोगों ने गांव व कस्बे में दुकान खोल स्वरोजगार अपना लिया है।
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