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Ambedkar Jayanti 2022: नहीं जानते होंगे आप बाबा साहब आंबेडकर के जीवन का ये सच, आगरा में दिए थे बौद्ध धर्म अपनाने के संकेत

आगरा

संविधान शिल्पी डॉ. बीआर आंबेडकर का आगरा से गहरा नाता रहा है। वह शहर में दो बार आए। उन्होंने ही चक्कीपाट बुद्ध विहार में भगवान बुद्ध की मूर्ति की स्थापना की। संभवत: यह राज्य में उनके द्वारा स्थापित पहली और आखिरी भगवान बुद्ध की मूर्ति है। और ये ही संकेत था उनका बौद्ध धर्म अपनाने का।

डॉ. आंबेडकर पहली बार 10 मार्च, 1946 को शहर के एमजी रोड स्थित सुभाष पार्क में आए थे। उन्होंने अपना उद्बोधन अंग्रेजी में दिया था। इससे उनके विचार को बहुसंख्य अनुयायी समझ नहीं पाए थे। बाबा साहब ने अगली बार हिंदी बोलना सीखकर ही आने की बात कही। 18 मार्च, 1956 को बाबा साहब दूसरी और आखिरी बार आगरा किला के समीप रामलीला मैदान में आए थे। उन्होंने समाज में भेदभाव मिटाने के अपने मिशन पर कहा कि मैं इस कारवां को इस मंजिल तक लेकर आया हूं। मैं चाहता हूं कि यह कारवां आगे बढ़ता रहे मेरे अनुयायियों। यदि कारवां को आगे न भी बढ़ा सको तो कम से कम पीछे भी मत जाने देना। आगरा आने के छह माह बाद 14 अक्टूबर, 1956 को उन्होंने नागपुर में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था।

18 मार्च, 1956 को बाबा साहब चक्कीपाट बुद्ध विहार भी आए थे। यहां उन्होंने भगवान गौतम बुद्ध की मूर्ति स्थापित की। मूर्ति तकरीबन तीन फुट की है। इसमें गौतम बुद्ध बैठकर आशीर्वाद देने की मुद्रा में हैं। उत्तर प्रदेश में इससे पहले और बाद में बाबा साहब के भगवान बुद्ध की स्थापना का उल्लेख नहीं मिलता है। संभवत: यह पहली और आखिरी मूर्ति है।

बाबा साहब का छह दिसंबर, 1956 को परिनिर्वाण हो गया था। 1957 से ही उनकी जयंती आगरा में मनाई जाने लगी। काजीपाड़ा में सबसे पहले उनकी जयंती मनाई गई थी।

बाबा साहब का अस्थि कलश उनके पुत्र यशवंत राव आंबेडकर लेकर चक्कीपाट बुद्ध विहार लेकर आए थे। यशवंत के संग सोहन लाल शास्त्री, शंकरानंद शास्त्री व कुछ अन्य लोग भी आए थे। हर साल छह दिसंबर को यहां अस्थि कलश के दर्शन होते हैं।

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