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हर साल बच्चों में आ रहें हैं 50 हजार कैंसर के मामले, समय पर इलाज से बचाई जा सकती है जान

बच्चों में लंबे समय तक बुखार रहे या वजन घटे तो सचेत हो जाएं। आमतौर पर इसे टाइफाइड मान लिया जाता है। लेकिन ये कैंसर के भी लक्षण (Cancer Symptoms) हो सकते हैं।

इसके अलावा कमजोरी, शरीर में दर्द, हड्डियां कमजोर होना, शरीर पीला पड़ना, आंखों में सफेद चमक, आंखों में भैंगापन भी इसके संकेत (Signs of Cancer) हैं। कैंसर बच्चों समेत सभी उम्र के लोगों में होता है। हालांकि इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।

हर साल 50 हजार से ज्यादा नए मामले

इंडियन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक देश में प्रतिवर्ष 50 हजार से ज्यादा नए बाल कैंसर के मामले सामने आते हैं । यदि समय पर इसका पता चल जाए और प्रभावी उपचार किया जाए तो इसका इलाज संभव है। अकेले राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र (आरजीसीआईआरसी), दिल्ली में बाल कैंसर के 15 से 20 हजार केस प्रतिवर्ष आते हैं, जहां स्वस्थ होने की दर 50 से 60 प्रतिशत है। वहीं एम्स में प्रतिवर्ष पहुंचने वाले 400 से अधिक मरीजों में से 65 प्रतिशत तक पूरी तरह ठीक हो रहे हैं।

इंडियन पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बाल कैंसर के सबसे ज्यादा मामले उत्तर भारत में हैं। देशभर के जनसंख्या आधारित 33 कैंसर रजिस्ट्रीज के वर्ष 2012 से 2016 तक के डाटा के मुताबिक उत्तर भारत में प्रति 10 लाख की आबादी में 156 लड़के और 97 लड़कियां कैंसर से ग्रसित दर्ज की गईं।

दक्षिण भारत में यह आंकड़ा क्रमशः 122 और 92 रहा। वहीं पूर्वोत्तर भारत में बाल कैंसर की दर सबसे कम रही। यहां प्रति दस लाख की आबादी में 47 लड़के व 33 लड़कियां कैंसर ग्रसित मिलीं। वर्ष 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2012 से 2016 में कुल 4,30,091 कैंसर के मामले सामने आए थे। इनमें 2,15,726 पुरुष (50.2 प्रतिशत) व 2,14,365 महिला (49.8 प्रतिशत) दर्ज किए गए। पुरुषों में कैंसर की दर प्रति एक लाख की आबादी में 105.5 और महिलाओं में 104.5 रही। कुल कैंसर के मामलों में 8,692 (दो प्रतिशत) बाल चिकित्सा कैंसर के थे। इसमें लड़के 5,365 (61.7 प्रतिशत) और लड़कियां 3,327 (38.3 प्रतिशत) रहीं।

ठीक होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य का होगा अध्ययन

बच्चों में ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और सेंट्रल नर्वस सिस्टम (सीएनएस) ट्यूमर के केस सबसे अधिक आ रहे हैं। वहीं न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म्स ट्यूमर, साफ्ट टिश्यू सारकोमा, हड्डियों का कैंसर और रेटिनोब्लास्टोमा मामले भी सामने आ रहे हैं। वर्ष 2016 में एम्स ने कैंसर सर्वाइवर रजिस्ट्री की शुरुआत की थी। इससे अब तक दो हजार से अधिक बच्चे जुड़ चुके हैं। रजिस्ट्री में पंजीकृत कैंसर सर्वाइवर बच्चों पर भविष्य में अध्ययन करके यह पता लगाया जा सकेगा कि बच्चे कितने समय तक स्वस्थ रहते हैं।

60 प्रतिशत तक बढ़ाएंगे जीवित रहने की दर वर्ष

2018 में डब्ल्यूएचओ और अमेरिका के सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हास्पिटल ने बाल कैंसर के लिए वैश्विक पहल (जीआइसीसी) शुरू की। इसका लक्ष्य 2030 तक वैश्विक स्तर पर कैंसर से पीड़ित बच्चों की जीवित रहने की दर 60 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

डॉ. कपिल गोयल (कैंसर विशेषज्ञ, आरजीसी आइआरसी, दिल्ली) बताते हैं कि बच्चों का शरीर विकसित होने की अवस्था में रहता है। इस वजह से कैंसर पीड़ित बच्चों के शरीर पर इलाज का असर ज्यादा अच्छा होता है। समय पर जांच और सटीक उपचार से कैंसर की बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है। इस वजह से बच्चों को दोबारा कैंसर होने का खतरा न के बराबर होता है।

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