आज देशभर में चर्चा का बड़ा विषय है — लद्दाख के पर्यावरण योद्धा और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी।
वो शख्स, जिनकी सोच से फिल्म 3 Idiots का किरदार रैंचो बना, आज खुद सरकार की सख्त कार्रवाई का सामना कर रहे हैं।
26 सितंबर 2025 को लद्दाख की राजधानी लेह में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद प्रशासन ने सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी NSA के तहत गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद उन्हें लद्दाख से बाहर भेजकर राजस्थान की जोधपुर सेंट्रल जेल में रखा गया है, जहाँ उन्हें हाई सिक्योरिटी में निगरानी में रखा गया है।
इस गिरफ्तारी के पीछे की कहानी लद्दाख के भविष्य से जुड़ी है।
सोनम वांगचुक बीते कई महीनों से लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और उसे भारतीय संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के अंतर्गत शामिल करने की माँग कर रहे थे।
छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को विशेष दर्जा और अधिक स्वायत्तता मिलती, जिससे स्थानीय जनजातियों की संस्कृति, पर्यावरण और भूमि अधिकार सुरक्षित रहते।
10 सितंबर को वांगचुक ने इसी मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की थी।
शुरुआत में आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण था, लेकिन 23 सितंबर को लेह में प्रदर्शन के दौरान झड़पें हो गईं।
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई इस हिंसा में चार लोगों की मौत और दर्जनों के घायल होने की खबर आई।
इसके बाद प्रशासन ने हालात को नियंत्रित करने के लिए कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, जिनमें सोनम वांगचुक का नाम सबसे प्रमुख था।
प्रशासन का दावा है कि आंदोलन के दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए, जिससे हिंसा हुई, और इसी आधार पर NSA लागू किया गया।
हालांकि, वांगचुक के समर्थक और नागरिक समाज संगठन इसे “लोकतांत्रिक आवाज़ दबाने की कोशिश” बता रहे हैं।
वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
उन्होंने कहा है कि सोनम वांगचुक को बिना ठोस सबूत के गिरफ्तार किया गया, और परिवार को उनसे मिलने की भी अनुमति नहीं दी जा रही।
उन्होंने यह भी कहा कि एक शांतिपूर्ण सामाजिक कार्यकर्ता पर एनएसए लगाना लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक मिसाल है।
इधर, जेल से सोनम वांगचुक ने अपने समर्थकों को एक संदेश भेजा है।
उन्होंने कहा —
“मैं तब तक जेल में रहूँगा, जब तक लद्दाख में हुई मौतों की निष्पक्ष जाँच नहीं होती।
यह आंदोलन किसी पार्टी का नहीं, बल्कि लद्दाख की धरती और उसके लोगों की रक्षा का आंदोलन है।”
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने हाल ही में वांगचुक की संस्था SECMOL का FCRA लाइसेंस भी रद्द कर दिया है, जिससे उनकी संस्था अब विदेशी फंडिंग नहीं ले पाएगी।
सरकार का कहना है कि SECMOL ने फंडिंग नियमों का उल्लंघन किया है, लेकिन संस्था का दावा है कि यह केवल उन्हें दबाव में लाने का तरीका है।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि आखिरकार सोनम वांगचुक जैसे शांतिपूर्ण कार्यकर्ता पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम क्यों लगाया गया?
अदालत ने केंद्र से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई अगले हफ्ते तय की है।
लद्दाख, दिल्ली, जयपुर, शिमला और देश के कई शहरों में “Free Sonam Wangchuk” के नारे लग रहे हैं।
छात्र, पर्यावरण कार्यकर्ता और आम नागरिक उनके समर्थन में सड़कों पर उतर आए हैं।
लोग कह रहे हैं — वांगचुक की आवाज़ को जेल में बंद किया जा सकता है, लेकिन उनके विचारों को नहीं।
अब देश की नज़र सुप्रीम कोर्ट पर है, जहाँ से तय होगा कि यह गिरफ्तारी न्याय की दिशा में है या अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रहार।
सवाल सिर्फ एक व्यक्ति की रिहाई का नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र की आत्मा का है —
क्या भारत में अब भी शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार सुरक्षित है?