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HomeMera Lekhउसकी रूह तक कांप रही थी, लोग आबरू देख रहे थे ।

उसकी रूह तक कांप रही थी, लोग आबरू देख रहे थे ।

उसकी रूह तक कांप रही थी लोग आबरू देख रहे थे ,,
वो सवालों के घेरे में बचपन से थी, लोग जवाब उसके अब लिबाज़ को दे रहे थे ।।

फिर रुख्सत हुई है एक रूह बेफिक्री सी
मासूमियत के लिबाज़ में थोड़ी ज्यादा लिपटी सी
अब क़द्र इंसान की नहीं नाम की रह गयी
आज जब लोगों ने आवाज उठायी
वो इंसानियत खाक तब हो गयी
कुछ ने कहकर उसे इन्साफ बाल्मीकि माँगा है
वो देश की बेटी शायद फिर जाति के नाम पर ही सिमट गयी
हर शख्स देता है आज तवज्जों नाम को
रब देख तेरे इंसान की औक़ात बस इतनी ही रह गयी
एक मासूम पाकीज़ा रूह फिर से गुमनाम हो गई ,
गलती कुछ भी नहीं थी बेकसूर ही बेहद दूर हो गई
हालात बद से बत्तर हो रहे है
एह खुदा देख इंसान की हालत क्या हो गई ,
हेवानियत कितनी बड़ गई मासूम की चीख भी
उन दरिंदों के आगे फीकी सी पड़ गईं ,,
दर्द बेशुमार हो रहा होगा उसे ,
और वो एक एक पल मौत दे रहा होगा उसे ,,
और कितनी शर्मसार होगी इंसानियत ,,
ना जाने क्यूं बदलती है पल पल ये नियत ,,
सवालों के घेरे अक्सर लगाए जाएंगे ,,
जब लड़की घर से निकले हाथ भी उठाएं जाएंगे ,,,
कोई मांगे उनसे भी जवाब आज क्यों चुप्पी है सवालों पर उनके ,,
क्यू नही उठते है हाथ उन दरिंदों के जमीर पे ,,
आज फिर क्या तुम वही सब दोहराओगे
तुम जाति के विषैले डंको से फिर से डसते जाओगे ,,
अब थोड़ी इंसानियत भी दिखाओगे
या बस हर नर में राम ये कह कर ही रह जाओगे।।।।

मोनिका धनगर ( लेखिका )

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